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उत्तराखंड के धूम सिंह नेगी को मिला जमनालाल बजाज पुरस्कार, उपराष्ट्रपति ने किया सम्मानित

उत्तराखंड के धूम सिंह नेगी को मिला जमनालाल बजाज पुरस्कार, उपराष्ट्रपति ने किया सम्मानित
गांधीवादी और सर्वोदयी सेवक धूम सिंह नेगी को 2018 के जमनालाल बजाज पुरस्कार से सम्मानित किया गया है। उपराष्ट्रपति वेंकैया नायडू ने मुंबई में वयोवृद्ध धूम सिंह नेगी को पर्यावरण के क्षेत्र में विशेष कार्य करने के लिए 10 लाख रुपये के नकद पुरस्कार और ट्राफी देकर सम्मानित किया।
नरेंद्रनगर ब्लॉक में खाड़ी क्षेत्र के पिपलेथ गांव निवासी 79 वर्षीय धूम सिंह नेगी ने विनोबा जी से प्रभावित होकर 1974 में पब्लिक जूनियर हाईस्कूल में हेडमास्टर के पद से इस्तीफा देकर अपना पूरा जीवन समाज के लिए समर्पित कर दिया।
 
30 मई 1977 को अदवाणी और सलेथ गांव के चीड़ मिश्रित हरे पेड़ों पर आरियां चलाने की तैयारी की जा चुकी थी। तब धूम सिंह नेगी और ग्रामीणों ने पेड़ों को बचाने के लिए आंदोलन शुरू कर दिया।
मामला बढ़ने पर धूम सिंह नेगी पेड़ों पर चिपक गए और रात भर जंगल में ही मोर्चे पर डटे रहे, जिससे हरे-भरे पेड़ कटने से बच गए। इसके साथ ही धूम सिंह नेगी ने शराबबंदी आंदोलन, भूदान आंदोलन, बांध विरोधी आंदोलन, चिपको आंदोलन को भी पंख लगाए। शराबबंदी आंदोलन चलाने पर उन्हें दो बार जेल की हवा भी खानी पड़ी।
 
जन सरोकारों से जुड़े धूम सिंह नेगी को  बृहस्पतिवार को मुंबई स्थित ताज होटल में उपराष्ट्रपति वैंकेया नायडू ने 10 लाख रुपये के नकद पुरस्कार और ट्राफी देकर सम्मानित किया। उनके साथ उनकी पत्नी रेणू नेगी और पुत्र अरविंद भी मौजूद रहे। सर्वोदयी नेता को जमनालाल बजाज पुरस्कार सम्मान दिए जाने से स्थानीय लोगों ने खुशी जताई है।
 
………………………………………………………………………………………………टिहरी जिले के गांधीवादी शिक्षक, चिपको कार्यकर्ता और समाजसेवी धूम सिंह नेगी (79) को पर्यावरण और शिक्षा के क्षेत्र में उल्लेलखनीय योगदान के लिए जमनालाल बजाज पुरस्कार से सम्मानित किया गया है। उपराष्ट्रपति वेंकैया नायडू ने मुंबई में गुरुवार को नेगी को पुरस्कार के तहत दस लाख रुपये और प्रशस्ति पत्र से नवाजा।
पिपलेथ गांव के हैं नेगी : धूम सिंह नेगी ब्लॉक फकोट के पिपलेथ गांव के निवासी हैं। उन्होंने चिपको आंदोलन से लेकर शराबबंदी, खनन विरोध और बीज बचाओ आंदोलन में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। इनके तीन विद्यार्थी कुंवर प्रसून, प्रताप शिखर और विजय जड़धारी भी नौकरी छोड़ कर समाजसेवा में जुट गए। बाद में इन्होंने पहाड़ के परंपरागत खेतीबाड़ी को बचाने के लिए बीज बचाओ आंदोलन चलाया। नेगी के परिवार में उनकी पत्नी और तीन पुत्र हैं।  उत्तराखंड में इससे पहले सुंदरलाल बहुगुणा, मान सिंह रावत, अनिल प्रकाश जोशी, गौरा देवी, राधा बहन व विमला बहुगुणा को जमनालाल बजाज पुरस्कार से नवाजा जा चुका है। नेगी को पुरस्कार मिलने पर पद्मविभूषण सुंदरलाल बहुगुणा ने खुशी जताई।
 
समाजसेवा के लिए छोड़ दी नौकरी
प्रसिद्ध गांधीवादी नेता सुंदर लाल बहुगुणा के संपर्क में आकर धूम सिंह नेगी वर्ष 1971 में शराबबंदी आंदोलन में जेल गए। 1974 में वह जूनियर हाईस्कूल जाजल के प्रधानाध्यापक पद से त्यागपत्र देकर समाजसेवा को समर्पित हो गए।
 
चिपको आंदोलन कर कटने से बचाए पेड़
चिपको आंदोलन के दौरान धूम सिंह नेगी ने हेंवलघाटी में पेड़ों से चिपककर उन्हें कटने से बचाया। नरेंद्रनगर में पेड़ों के व्यावसायिक कटान के लिए जंगलों की नीलामी का विरोध करने पर वर्ष 1977 में वह दोबारा जेल गए। चिपको का संदेश पूरे देश और हिमालय क्षेत्र में फैलाने के लिए नेगी ने सुंदर लाल बहुगुणा के साथ कश्मीर से कोहिमा तक लगभग 5000 किलोमीटर की यात्रा की।
 
इसलिए दिया जाता है पुरस्कार
यह पुरस्कार गांधीवादी विचारों के उन्नयन, सामुदायिक सेवा और सामाजिक विकास में योगदान के लिए 1978 से दिया जाता है।
पर्यावरणविद धूम  सिंह नेगी टिहरी जिले के नरेंद्रनगर प्रखंड स्थित पिपलेथ कठियागांव के रहने वाले हैं। उन्होंने गांव के नजदीकी सरकारी विद्यालय से प्राथमिक शिक्षा और टिहरी से स्नातक तक की शिक्षा ग्रहण की। वर्ष 1964 में वे सरकारी शिक्षक बने और चार साल तक नरेंद्रनगर के दोगी स्थित प्राथमिक विद्यालय में शिक्षण कार्य किया। लेकिन, क्षेत्र में कोई बड़ा स्कूल न होने के कारण उन्होंने नौकरी छोड़ दी और जाजल में एक प्राइवेट जूनियर हाईस्कूल की स्थापना की।
दस साल वहां पढ़ाने और स्कूल स्थापित करने के बाद उन्होंने वहां से भी त्यागपत्र दे दिया और जंगलों को बचाने के लिए ‘चिपको’ आंदोलन में सक्रिय हो गए। उन्होंने चमोली, लासी, बडियारगढ़, खुरेत व नरेंद्रनगर के जंगलों में आंदोलन की कमान संभाली और नौ फरवरी 1978 को नरेंद्रनगर में वनों की नीलामी का विरोध करते हुए जेल गए। चौदह दिन जेल में रहने के बाद नेगी फिर आंदोलन में सक्रिय हो गए।
चिपको आंदोलन के सफल होने के बाद वे प्रदेश में शराबबंदी आंदोलन में कूद गये। कई सालों तक शराबबंदी आंदोलन का नेतृत्व किया और फिर 1980 में देहरादून के नजदीकी सिंस्यारु खाला में खनन विरोधी आंदोलन में सक्रिय भागीदारी की। चार साल वहां आंदोलन का नेतृत्व करने के बाद वे नागणी के कटाल्डी खनन विरोधी आंदोलन में सक्रिय हो गए। यहां कई सालों तक उन्होंने आंदोलन की अगुआई की। इसी बीच उन्होंने विनोबा भावे के भूदान आंदोलन और शिक्षा जागरण आंदोलन में भी सक्रिय भागीदारी की। पर्यावरण के प्रति जागरुकता के लिए नेगी ने कश्मीर से लेकर कोहिमा और गंगोत्री से लेकर गंगासागर तक की पैदल यात्रा भी की।
इसके बाद वर्ष 1994 से वे खेती व पारंपरिक बीजों को बचाने के लिए ‘बीच बचाओ’ आंदोलन में सक्रिय हो गये। इसके अलावा उन्होंने 1998 में आराकोट से लेकर अस्कोट की दो बार पैदल यात्रा भी की। आज भी वे प्रचार-प्रसार से कोसों दूर अपने गांव पिपलेथ में रहते हैं और नई पीढ़ी को समाज सेवा का पाठ पढ़ा रहे हैं। उनके तीन पुत्र व एक पुत्री हैं। सभी का विवाह हो चुका है।
Vice President M Venkaiah Naidu on Thursday gave the 41st Jamnalal Bajaj Awards to four prominent Gandhians in the field of
humanitarian and social work. The winners of the award for 2018 are Rupal Desai and Rajendra Desai of Gujarat, Dhoom Singh Negi of Uttarakhand,Prasanna Bhandari of Rajasthan and Clayborne Carson, Founding Director of The Martin Luther King Jr. Research and Education Institute in the US.
The annual awards, presented by the Jamnalal Bajaj Foundation (JBF), commemorates the birth anniversary of the late industrialist Jamnalal Bajaj and recognizes achievers in the fields of Gandhian and humanitarian programmes with a citation, trophy and a prize amount of Rs 10 lakh in each category.
Present on the occasion were Maharashtra Governor C.V. Rao, Chief Minister Devendra Fadnavis, Jamnalal Bajaj Foundation chairman Rahul Bajaj,JBF Council of Advisors chairman Justice C S Dharmadhikari (retired) and other dignitaries.
Former US corporate executives — Rupal Desai, an architect, and her husband Rajendra Desai, an engineer — returned to India in 1984 and plunged into social service, utilizing their technical knowledge for the betterment of the rural communities.
Following Gandhian philosophy of self-sustenance, they deployed modern technology for rural housing and spent six years in Latur in Maharashtra after the 1993 earthquake to focus on building local capacity and ensuring future earthquake risk reductions.
They trained over 1,500 artisans and others, saved more than 750 traditional masonry buildings during the earthquake by retrofitting.
A former teacher, Negi — also revered as ‘guruji’ in Uttarakhand — has led many constructive agitations for environment protection including the Chipko Movement and taken part in the Gram Swaraj of Gandhiji-Vinoba Bhave.
He also participated in Gandhiji’s Sarvodaya Movement, opposed illegal systems, unfair practices and injustice, and conducted massive afforestation drives to conserve the sensitive Himalayan regions.
The Convenor of Shri Karni Nagar Vikas Samiti (Kota), Bhandari worked for the cause of abandoned infants, destitutes, distressed women and girls Shishugriha, an infant-care nursery founded by her in 1977, has helped legal adoption of 900 discarded children. Balgriha and Balikagriha for older children have benefited around 3,000 boys and 200 girls who have been married and integrated into social mainstream.
Inspired by Gandhi and Martin Luther King, Carson launched a movement to teach Gandhian and King philosophies in 2008, participated in student movements and joined Martin Luther King during his historic 1963 march to Washington DC. In 1985, Martin Luther King Jr’s widow Coretta Scott King invited Carson to direct a project to edit and publish a comprehensive edition of her husband’s speeches, correspondence, publications and unpublished works. The JBF also announced opening of nominations for the 2019 awards.
 

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