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उत्तराखंड में मानव और वन्यजीव संघर्ष

उत्तराखंड में मानव और वन्यजीव संघर्ष किस कदर चिंताजनक स्थिति में पहुंच गया है, वन्यजीवों को आदमखोर घोषित करने की तस्वीर इसकी तस्दीक करती है। विभागीय आंकड़ों को ही देखें तो साल-दर-साल आदमखोर (मनुष्य के लिए खतरनाक) घोषित होने वाले जंगली जानवरों की संख्या लगातार बढ़ रही है। इस साल तो पिछले 13 सालों का रिकार्ड ही टूट गया। इस अवधि में वर्ष 2009 में 24 वन्यजीव आदमखोर घोषित हुए थे, जबकि 2018 में यह संख्या 32 पहुंच गई। पहली बार दो हाथियों को भी मानव के लिए खतरनाक घोषित किया गया।

जैव विविधता के लिए मशहूर उत्तराखंड की वन्यजीव विविधता भी बेजोड़ है, जो उसे देश-दुनिया में विशिष्ट स्थान दिलाती है। बाघ और हाथियों के संरक्षण में 71 फीसद वन भूभाग वाला यह राज्य अहम भूमिका निभा रहा है। बावजूद इसके तस्वीर का दूसरा पहलू भी है। वह है मानव और वन्यजीवों के बीच लगातार बढ़ता द्वंद्व। इसमें गुलदार और बाघ सबसे अधिक खतरनाक साबित हो रहे हैं। गुलदार के खौफ का आलम ये है कि न घर-आंगन महफूज हैं न खेत-खलिहान। वन्यजीवों के हमलों की सर्वाधिक घटनाएं गुलदारों की ही हैं। आदमखोर भी सबसे अधिक गुलदार ही घोषित हुए हैं। वर्ष 2006 से अब तक के वक्फे को देखें तो इस अवधि में सबसे अधिक 189 गुलदार आदमखोर घोषित किए गए। इसके अलावा प्रदेश के विभिन्न क्षेत्रों में 18 बाघ और इस वर्ष पहली मर्तबा राजाजी टाइगर रिजर्व और हरिद्वार वन प्रभाग में एक-एक हाथी को मानव के लिए खतरनाक घोषित किया गया। हालांकि, अब तक आदमखोर घोषित इन वन्यजीवों में अधिकांश को पकड़ने के साथ ही कुछ को मार गिराया जा चुका है, लेकिन जानकारों की मानें तो यह समस्या का समाधान नहीं है। मानव और वन्यजीव संघर्ष थामने के लिए ठोस एवं प्रभावी उपायों की दरकार है। इसके लिए सरकार से लेकर आमजन तक हर स्तर पर पहल होनी आवश्यक है।

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