जीरो बजट प्राकृतिक कृषि, प्राकृतिक संसाधनों की सहायता से की जाने वाली कृषि पद्धति है।
इस प्रकार की कृषि व्यवस्था में हाईब्रिड बीज, कीटनाशक व रासायनिक खाद का इस्तेमाल नहीं होता है।
चर्चा में क्यों?
आंध्र प्रदेश, हिमाचल प्रदेश सहित देश के अन्य हिस्सों में किसानों द्वारा अपनाए जाने के कारण।
उद्देश्य
कम लागत में उच्च पैदावार, जलवायु परिवर्तन से सुरक्षा तथा बेहतर स्वास्थ्य की प्राप्ति, जीरो बजट प्राकृतिक कृषि का मूल उद्देश्य है।
संबंधित तथ्य
जीरो बजट खेती के जनक महाराष्ट्र के सुभाष पालेकर हैं। देश के विभिन्न हिस्सों में किसानों को इस कृषि पद्धति में प्रशिक्षित करने का कार्य कर रहे हैं।
आंध्र प्रदेश जीरो बजट प्राकृतिक खेती को अपनाने वाला पहला राज्य है, जबकि हिमाचल प्रदेश दूसरा राज्य है।
रासायनिक उर्वरक के स्थान पर किसान स्वयं की तैयार की हुई खाद का इस्तेमाल खेती में करते हैं। इस खाद को ‘घन जीवा अमृत’ कहा जाता है।
घन जीवा अमृत में गाय के गोबर, गौमूत्र, चने के बेसन, मिट्टी, गुड़ व पानी का प्रयोग होता है।
रासायनिक कीटनाशकों के स्थान पर नीम, गोबर व गौमूत्र का बना हुआ ‘नीमास्त’ का प्रयोग किया जाता है।
बाजार के हाईब्रिड बीजों के स्थान पर देशी बीजों का प्रयोग फसल उत्पादन के लिए होता है।
खेतों की सिंचाई, गुड़ाई व जुताई का कार्य घरेलू पशुओं द्वारा किया जाता है।
जीरो बजट प्राकृतिक कृषि को प्रारंभ में सितंबर, 2015 में केंद्र सरकार की राष्ट्रीय कृषि विकास योजना के अंतर्गत शुरू किया गया था।
जीरो बजट कृषि पद्धति रासायनिक कीटनाशकों के प्रयोग को हतोत्साहित कर बेहतर कृषि पद्धति को संचालित करती है।
इस कृषि पद्धति में किसान की लागत अत्यंत कम होती है, क्योंकि जैविक उर्वरक के रूप में प्रयोग होने वाली वस्तुएं जैसे- गाय का गोबर, पेड़-पौधे व वनस्पतियां, मल-मूत्र, केंचुआ निःशुल्क व बड़ी मात्रा में गांवों में उपलब्ध होते हैं।