unemploybility of engineering student#ukpcs interview
देश में इंजीनियरिंग शिक्षा की असलियत बयान करने वाली एक और रिपोर्ट सामने आई है। रोजगार का लेखा-जोखा करने वाली कंपनी एस्पायरिंग माइंड्स की एक सर्वे रिपोर्ट के अनुसार देश के 80 प्रतिशत से अधिक इंजीनियर आज की कौशल केंद्रित अर्थव्यवस्था में नौकरी के लायक नहीं हैं। यह सर्वेक्षण 750 इंजीनियरिंग कॉलेजों के 1 लाख 70 हजार छात्रों के बीच किया गया। पता चला कि केवल 3 प्रतिशत इंजीनियरों के पास आर्टिफिशल इंटेलिजेंस, मशीन लर्निंग, डेटा साइंस और मोबाइल डिवेलपमेंट जैसे अधिक मांग वाले क्षेत्रों में नए-पुराने तकनीकी कौशल की जानकारी है।
रिपोर्ट में भारतीय इंजीनियरों की बेरोजगारी की कुछ वजहों की ओर भी संकेत किया गया है। जैसे, भारत में एक से ज्यादा इंटर्नशिप करने वाले छात्र मात्र 7 प्रतिशत हैं जबकि 40 प्रतिशत इंजीनियरिंग छात्र सिर्फ एक इंटर्नशिप करते हैं। केवल 36 प्रतिशत ही अपने कोर्स से परे कोई प्रॉजेक्ट करते हैं, नतीजा यह कि वे विभिन्न प्रकार की समस्याएं हल करने की योग्यता नहीं हासिल कर पाते।
कॉलेजों में व्यावहारिक ज्ञान कम और सैद्धांतिक ज्ञान ज्यादा दिया जाता है। 60 प्रतिशत शिक्षक औद्योगिक क्षेत्र के लिए जरूरी चीजों पर कोई बात नहीं करते और इंडस्ट्री पर बात केवल 47 प्रतिशत इंजीनियर करते हैं। बाकी बस किताबी ज्ञान हासिल कर परीक्षा दे देते हैं। यह तस्वीर वाकई निराशाजनक है।
हाल में कई और रिपोर्टें आई हैं जिन्होंने इंजीनियरिंग शिक्षा की कमियों की ओर इशारा किया है। पिछले एक-डेढ़ दशकों में देश में इंजीनियरिंग कॉलेजों की बाढ़ सी आ गई, जिनमें ज्यादातर को मोटी फीस से मतलब रहा। उन्होंने अपनी फैकल्टी को बेहतर बनाने की कोशिश ही नहीं की, सिर्फ डिग्री थमाकर निश्चिंत होते रहे। लेकिन इन डिग्रीधारकों को बाजार ने अपने लायक नहीं समझा। इस तरह बेरोजगार इंजीनियरों की भीड़ बढ़ती गई।
साल 2016 में बीई/बीटेक के लगभग आठ लाख डिग्रीधारकों में से महज 40 फीसदी को कैंपस सिलेक्शन के जरिए नौकरी मिल सकी थी। इस क्रम में छात्रों का इंजीनियरिंग से मोहभंग होता जा रहा है। बीई/बीटेक की लगभग 15.5 लाख सीटों में 51 फीसदी 2016-17 में खाली रह गईं। एस्पायरिंग माइंड्स का सुझाव है कि पहले साल से ही इंजीनियरिंग कॉलेजों को छात्रों की रोजगारपरकता का आकलन शुरू कर देना चाहिए।
उच्च शिक्षा संस्थानों में छात्रों को कुशल बनाने के लिए कार्यक्रम आधारित प्रशिक्षण योजना बननी चाहिए। इंटर्नशिप कार्यक्रमों को बढ़ावा मिलना चाहिए। प्राइवेट कॉलेजों और यूनिवर्सिटीज को रोजगार संबंधी शोध कार्यक्रम शुरू करने चाहिए। अगर हम दुनिया के साथ कदम से कदम मिलाकर चलना चाहते हैं तो हमें अपनी इंजीनियरिंग शिक्षा की कमियां दूर कर उसे अपडेट बनाना होगा ताकि भारतीय इंजीनियर किसी भी मामले में पीछे न रहें।