वैज्ञानिकों ने हिमालयी झीलों के संरक्षण की जरूरत बताईपिथौरागढ़, वैज्ञानिकों ने चेतावनी दी है कि हिमालयी झीलों के संरक्षण के लिये अगर जल्द ही कोई ठोस रणनीति न बनायी गयी तो क्षेत्र के जल निकाय बुरी तरह प्रभावित हो सकते हैं ।
अल्मोड़ा के जीबी पंत राष्ट्रीय हिमालयी पर्यावरण एवं सतत विकास संस्थान में एक सेमिनार के दौरान ऊंचाई पर स्थित हिमालयी झीलों के संरक्षण और प्रबंधन पर एक आकलन पत्र भी तैयार किया गया । इस सेमिनार में देशभर के 35 से ज्यादा पर्यावरण वैज्ञानिक और नौकरशाह भाग ले रहे हैं ।
वैज्ञानिकों ने चेतावनी दी है कि हिमालयी झीलों के संरक्षण के लिये अगर जल्द ही कोई ठोस रणनीति न बनायी गयी तो क्षेत्र के जल निकाय बुरी तरह प्रभावित हो सकते हैं ।
अल्मोड़ा के जीबी पंत राष्ट्रीय हिमालयी पर्यावरण एवं सतत विकास संस्थान में एक सेमिनार के दौरान ऊंचाई पर स्थित हिमालयी झीलों के संरक्षण और प्रबंधन पर एक आकलन पत्र भी तैयार किया गया । इस सेमिनार में देशभर के 35 से ज्यादा पर्यावरण वैज्ञानिक और नौकरशाह भाग ले रहे हैं । संस्थान के निदेशक रणवीर सिंह रावल ने कहा कि यह आकलन पत्र जल्द ही देश के नीति निर्माताओं के सामने प्रस्तुत किया जायेगा ।
सेमिनार में विशेष रूप से समुद्र तल से 3,000 मीटर से अधिक ऊंचाई पर स्थित हिमालयी झीलों के संरक्षण के तरीकों पर चर्चा की गयी । रावल ने बताया कि सेमिनार में सभी का मत था कि अगर इन झीलों को समय रहते संरक्षित नहीं किया गया तो हिमालयी क्षेत्र में स्थित प्राकृतिक जल स्रोत भी प्रभावित हो सकते हैं । ये झील हिमालयी हिमनदों से पानी लेती हैं और इन्हीं के जरिए प्राकृतिक स्रोत और छोटी—मोटी नदियों को पानी जाता है ।
उन्होंने कहा बताया कि जम्मू—कश्मीर, उत्तराखंड, हिमाचल प्रदेश, सिक्क्मि तथा अरुणाचल प्रदेश जैसे पांच हिमालयी राज्यों में 3,000 मीटर से अधिक की ऊंचाई पर क्षेत्रफल के हिसाब से कुल मिलाकर 7,56,501 वर्ग किलोमीटर झीलें हैं ।