एजेंडा पहाड़: ग्रीन डेवलपमेंट के लिए उत्तराखंड को चाहिए ग्रीन बोनस

हिमाच्छादित चोटियां, वन, नदियां, झीलें और झरने उत्तराखंड समेत 11 हिमालयी राज्यों की ताकत और आकर्षण हैं, लेकिन यही ताकत उसकी तरक्की की राह में एक बड़ी चुनौती भी है। विकास और पर्यावरण के बीच के हिमालय राज्यों का नीति नियोजन संक्रमण के दौर से गुजर रहा है। सवाल उठ रहे हैं कि हिमालयी राज्यों में विकास का मॉडल आखिर क्या होना चाहिए? इन सभी पर्वतीय प्रांतों में हरित विकास (ग्रीन डेवलपमेंट) की वकालत हो रही है। हरित विकास के लिए भी सीमित संसाधनों वाले इन राज्यों को धन की दरकार है। इसलिए वे 28 जुलाई को मसूरी में एक फोरम पर आकर ग्रीन बोनस की आवाज को एक स्वर में उठाने जा रहे हैं।

जानकारों को मानना है कि जंगलों, नदियों, झील और झरनों की हिफाजत करते हुए तरक्की की राह चुनने के लिए विकास के अलग मॉडल की आवश्यकता है। ये तभी संभव है जब केंद्र सरकार उदार मन से वित्तीय सहायता प्रदान करे। विकास की योजनाओं का फंडिंग पैटर्न पर्वतीय राज्यों की भौगोलिक परिस्थितियों के अनुरूप हो। मसलन, प्रधानमंत्री ग्रामीण सड़क योजना में सेतु, टनल, रोपवे को शामिल किया जाए। इको फ्रेंडली योजनाओं के प्रोत्साहन को केंद्र इमदाद दे।

दो तरह से ग्रीन बोनस दे सकता है केंद्र: पांडेय
प्रदेश सरकार के वित्तीय सलाहकार इंदु कुमार पांडेय कहते हैं, केंद्र सरकार ग्रीन बोनस दो तरह से दे सकता है। पहला विशेष अनुदान के रूप में और दूसरा अधिमान के रूप में। केंद्र सरकार अपनी हिमालयी राज्यों के लिए अपनी योजनाओं में लचीलापन लाए। 14वें वित्त आयोग ने 7.5 फीसदी अधिमान दिया था। 15वें वित्त आयोग में इस अधिमान और वृद्धि हो। 

खेती और विकास के लिए सीमित जमीन
उत्तराखंड राज्य का 63 फीसदी भूभाग वनीय है। पड़ोसी राज्य हिमाचल की भी यही व्यथा है। वहां 66 फीसदी भूभाग पर जंगल हैं। यानी खेती और विकास योजनाओं के लिए भूमि बहुत सीमित है। राजस्व विभाग के भू रिकार्ड के मुताबिक, प्रदेश में महज 12 फीसदी भूमि ऐसी है, जिस पर विशुद्ध रूप से खेती होती है। बाकी भूमि पर चारागाह हैं, झाडियां हैं या फिर वो बंजर है, जिस पर कुछ भी नहीं होता। 

बड़ी कीमत चुका रहे हैं पहाड़ी राज्य
उत्तराखंड और अन्य पर्वतीय राज्यों पर पर्यावरण संरक्षण की बहुत बड़ी जिम्मेदारी हैं। लेकिन इस दायित्व की पूर्ति के लिए ये राज्य बड़ी कीमत चुका रहे हैं। उत्तराखंड के ऊर्जा राज्य का सपना टूटने की सबसे बड़ी वजह यही है। इको सेंसिटिव जोन में होने की वजह से 24 जल विद्युत परियोजनाओं पर ताला लटक गया है। कई बड़ी और मध्यम श्रेणी की परियोजनाओं का भविष्य अंधकार में हैं। सैकड़ों गांव सड़कों से नहीं जुड़ पाएं हैं।

खेती और विकास के लिए जमीन नहीं है
भूमि का प्रकार        प्रतिशत
वन                        63
शुद्ध बुआई का क्षेत्र    12
उजाड़ और ऊसर        4 
अन्य उपयोग                4
कृषि योग्य बेकार            6
चारागाह, वृक्ष, झाड़ी        7
परती भूमि                    4

उत्तराखंड का वन क्षेत्र
राज्य            कुल वन क्षेत्र            प्रतिशत
उत्तराखंड    3799953 हेक्टेयर    63.41
हिमाचल    3703297    हेक्टेयर    66.52

ग्रीन बोनस का पुख्ता आधार तैयार करने वाला देश का पहला राज्य बना उत्तराखंड 
ग्रीन बोनस की मांग को लेकर अंधेरे में हाथ-पांव मार रहे हिमालयी राज्यों को उत्तराखंड राह दिखाएगा। उत्तराखंड अब देश का पहला राज्य है जिसने पर्यावरणीय सेवा (इकोलॉजिकल सर्विस फ्लो) का आकलन कर ग्रीन बोनस का पुख्ता आधार तैयार किया है। मसूरी में हिमालयी राज्यों के कान्क्लेव से ठीक पहले 27 जुलाई को मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत इस इसीएस रिपोर्ट को जारी करेंगे।

वन भू भाग की अधिकता वाले हिमालयी राज्य अभी तक एक अनुमान के आधार पर ही ग्रीन बोनस की मांग करते रहे हैं। पूर्व में योजना आयोग ने भी यह कोशिश की थी और उत्तराखंड की ओर से दी जा रही पर्यावरणीय सेवाओं के आधार पर करीब 40 हजार करोड़ के ग्रीन बोनस का आकलन किया था। अब प्रदेश सरकार ने इसका नए सिरे से आकलन करवाया है। वित्त विभाग के सूत्रों के मुताबिक इस नए आकलन में प्रदेश के जंगल के उस क्षेत्र को शामिल किया गया है जिसका उपयोग राज्य विकास परियोजनाओं के रूप मेें कर सकता है, लेकिन पर्यावरण संरक्षण की वजह से कर नहीं पा रहा है। ईसीएस फ्लो के आधार पर यह रिपोर्ट तैयार कर ली गई है। अब उत्तराखंड देश का पहला राज्य भी बन गया है जिसने अपने स्तर पर ईसीएस फ्लो का आकलन किया है।इस आकलन के आधार पर प्रदेश की ग्रीन बोनस की कुल मांग करीब 1.95 लाख करोड़ की बन रही है। इस मांग को सीमित करते हुए प्रदेश सरकार करीब 95 हजार करोड़ के ग्रीन बोनस की मांग को वित्त आयोग और नीति आयोग के सामने रखेगी। हिमालयी राज्यों के सम्मेलन से ठीक पहले 27 जुलाई को मुख्यमंत्री इस रिपोर्ट को जारी भी कर रहे हैं। इस रिपोर्ट के साथ ही अब उत्तराखंड ग्रीन बोनस के मामले में अन्य दस हिमालयी राज्यों को राह दिखाने वाला भी बन गया है। अन्य हिमालयी राज्य भी ग्रीन बोनस की मांग कर रहे हैं लेकिन इनके पास मांग के समर्थन का कोई ठोस आधार नहीं है। उत्तराखंड ने भारतीय वन प्रबंधन संस्थान की प्रोफेसर मधु वर्मा के सहयोग से यह रिपोर्ट तैयार की है। मधु वर्मा ने 2002 में हिमाचल प्रदेश के वनों के मूल्यांकन की रिपोर्ट भी तैयार की थी।