गंगोत्री ग्लेशियर को लेकर वैज्ञानिकों ने किया एक नया खुलासा, हर साल हो रहा ये बड़ा बदलाव

गंगोत्री ग्लेशियर को लेकर वैज्ञानिकों ने किया एक नया खुलासा, हर साल हो रहा ये बड़ा बदलाव

गंगोत्री ग्लेशियर में लगातार हो रहे बदलाव के बीच वैज्ञानिकों ने एक नया खुलासा किया है। ऐसे में पर्यावरण में तेज बदलाव के कारण ग्लेशियरों पर मंडरा रहे संकट के बीच एक राहत देने वाली बात सामने आई है।

वाडिया इंस्टीट्यूट एवं राष्ट्रीय जलविज्ञान संस्थान के विज्ञानियों ने अपने शोध में पाया है कि गंगोत्री ग्लेशियर के पिघलने की गति में कमी आई है। अध्ययन में पाया गया है कि गंगोत्री ग्लेशियर हर साल 12 मीटर पीछे खिसक रहा है।
1935 के रिकॉर्ड के मुताबिक, पहले गंगोत्री ग्लेशियर के पिघलने की गति 20 से 22 मीटर प्रति वर्ष थी। लेकिन वर्ष 2017-18 में यह घटकर 12 मीटर हो गई है। गंगोत्री ग्लेशियर पर शोध कर रहे देहरादून स्थित वाडिया इंस्टीट्यूट ऑफ हिमालयन जियोलॉजी के वरिष्ठ वैज्ञानिक डॉ. डीपी डोभाल के मुताबिक रैपिड स्टैटिक एवं कायनेटिक जीपीएस सर्वे से किए गए शोध में यह खुलासा हुआ है।

वैज्ञानिकों की मानें तो उत्तरकाशी में स्थित इस सबसे बड़े ग्लेशियर के पीछे खिसकने की गति भविष्य में और कम हो सकती है। फिलहाल वाडिया इंस्टीट्यूट और जलविज्ञान संस्थान समेत कई संस्थाओं के वैज्ञानिक ग्लेशियर के पिघलने की मॉनीटरिंग कर रहे हैं।
तेजी से पिघल रहे छोटे ग्लेशियर
रुड़की स्थित राष्ट्रीय जलविज्ञान संस्थान के विज्ञानियों ने अपने शोध में पाया है कि पर्यावरण में तेजी से हो रहे बदलाव के चलते छोटे ग्लेशियर तो तेजी से पिघल रहे हैं लेकिन गंगोत्री ग्लेशियर के पिघलने की गति सामान्य है।
2014 में 19 मीटर पीछे खिसक रहा था गंगोत्री ग्लेशियर
राष्ट्रीय जलविज्ञान संस्थान के वरिष्ठ विज्ञानी डॉ. अरोरा के मुताबिक, साल 2014, 2015 में गंगोत्री ग्लेशियर के पिघलने की गति 19 मीटर थी, जिसमें कमी आई है। पिघलने की यह गति दुनिया के अन्य ग्लेशियरों की तुलना में काफी कम है।

70 साल में 1500 मीटर पीछे गया गंगोत्री ग्लेशियर

आंकड़ों के मुताबिक, गंगोत्री ग्लेशियर पिछले सात दशक के भीतर 1500 मीटर यानी डेढ़ किलोमीटर पीछे खिसक गया है। इसके लिए हिमालयी क्षेत्र में कार्बन की बढ़ती मात्रा के साथ ही अन्य पर्यावरणीय कारक जिम्मेदार बताए जा रहे हैं।
‘बीते कई दशकों से ग्लेशियर जिस तेजी से पीछे खिसक रहा था उसे देखते हुए लगता था कि गंगोत्री ग्लेशियर का स्वरूप बहुत तेजी से बदल जाएगा। हालांकि बीते कुछ साल में ग्लेशियर के पिघलने की गति में कमी आई है जो राहत की बात है।’
– डॉ. डीपी डोभाल