विश्व की महिलाएं 2015 : प्रवृत्ति एवं सांख्यिकी

विश्व की महिलाएं 2015 : प्रवृत्ति एवं सांख्यिकी

नारी, समाज का अंग है जो कि प्रकृतिवश या गहरी रुढ़ियों के कारण दुर्बल है। प्रारंभ में समाज में स्त्री एवं पुरुष में प्राणिशास्त्रीय विभाजन था जो कालांतर में सामाजिक विभाजन का रूप लेता गया और नारी को भोग-विलास की वस्तु मान लिया गया जिसके परिणामस्वरूप उसकी स्थिति दयनीय हो गई। लिंग पर आधारित भेदभाव और अस्वीकार्य असमानताएं सभी देशों में आज भी विद्यमान हैं। दुनिया का शायद ही ऐसा कोई देश हो जहां महिलाएं, पुरुषों के साथ समान अधिकार का उपयोग करती हों। महिलाओं के साथ भेदभाव और उन्हें हाशिये पर कर दिए जाने का कार्य बड़ी दक्षता और सम्मानजनक तरीके से किया जाता रहा है। इस संदर्भ में अंतर्राष्ट्रीय विधि में महिलाओं के अधिकारों की घोषणा की गई जो भेदभाव न करने के सिद्धांत पर आधारित है। संयुक्त राष्ट्र संघ द्वारा महिलाओं पर चतुर्थ विश्व सम्मेलन बीजिंग में वर्ष 1995 में आयोजित किया गया था। यह सम्मेलन विश्व स्तर पर आयोजित दुनिया के विशालतम सम्मेलनों में से एक था। इस सम्मेलन का नारा था ‘दुनिया को महिलाओं की दृष्टि से देखो’। इस सम्मेलन में एक बीजिंग घोषणा और कार्य के लिए प्लेटफार्म अंगीकृत किया गया था। दो दशक बाद महिलाओं की स्थिति पर इस सम्मेलन का कितना असर हुआ, महिलाओं की स्थिति में क्या परिवर्तन हुआ, इसी को दृष्टिगत संयुक्त राष्ट्र सांख्यिकी डिविजन के आर्थिक एवं सामाजिक संबंध विभाग द्वारा ‘विश्व महिलाएं 2015 : प्रवृत्ति एवं सांख्यिकी’ रिपोर्ट प्रस्तुत की गयी है। इस रिपोर्ट में महिलाओं एवं पुरुषों के बीच आठ बिंदुओं पर विद्यमान असमानताओं पर आंकड़े प्रस्तुत किए गए हैं। संयुक्त राष्ट्र आर्थिक एवं सामाजिक मामले, विभाग द्वारा 20 अक्टूबर, 2015 को ‘विश्व महिलाए : प्रवृत्ति एवं सांख्यिकी’ का छठवां संस्करण जारी किया गया। इस संस्करण में पिछले 20 वर्षों के दौरान वैश्विक एवं क्षेत्रीय स्तर पर महिलाओं और पुरुषों की स्थिति में आए परिवर्तनों के आंकड़े एवं उनका विश्लेषण प्रस्तुत किया गया है। वर्ष 1995 में संपन्न बीजिंग घोषणा-पत्र में महिलाओं से संबंधित पहचाने गए आठ बिंदुओं पर प्रकाश डाला गया है। ये आठ बिंदु हैं-जनसंख्या एवं परिवार, स्वास्थ्य, शिक्षा, काम, शक्ति एवं निर्णय-निर्माण, महिलाओं के विरुद्ध हिंसा, पर्यावरण एवं गरीबी।

  • वर्ष 2015 में विश्व की कुल आबादी 7.3 बिलियन है जिसमें से लगभग 83 प्रतिशत
    (6 बिलियन) विकासशील देशों में, जबकि शेष 17 प्रतिशत (1.3 बिलियन) लोग विकसित देशों में रहते हैं।
  • विकासशील देशों में निवास करने वाली जनसंख्या का क्षेत्रीय वितरण निम्नवत है-
विश्व जनसंख्या का क्षेत्रवार वितरण
      क्षेत्रविश्व जनसंख्या का प्रतिशत
पूर्वी एवं दक्षिण एशिया45 प्रतिशत
उप-सहारा अफ्रीका14 प्रतिशत
लैटिन अमेरिका एवं कैरेबियन9 प्रतिशत
दक्षिण-पूर्व एशियाकाकेशस, सेंट्रल एशिया,9 प्रतिशत
उत्तरी अफ्रीका, ओशेनिया,पश्चिमी एशिया7 प्रतिशत
शेष विश्व16 प्रतिशत
स्रोत : UNO, 2013
  • पिछले कुछ दशकों में जनसंख्या से संबंधित एक महत्त्वपूर्ण प्रवृत्ति (Trends) प्रकाश में आयी है।
  • अधिक उम्र की जनसंख्या में वृद्धि जबकि शिशुओं (0-14) की जनसंख्या में कमी परिलक्षित हुई है।
  • 0-14 वर्ष के बच्चों का प्रतिशत वर्ष 1995 में 32 था जो वर्ष 2015 में घटकर 26 रह गया है।
  • यह गिरावट विकसित देशों में अधिक हुई है। विकसित क्षेत्र में 0-14 वर्ष के बच्चों का प्रतिशत 17 है जबकि विकासशील क्षेत्रों में 28 प्रतिशत है।
  • विकासशील देशों में केवल चीन में इसका अपवाद देखा जा सकता है। चीन में बच्चों की जनसंख्या का प्रतिशत 18 है।
  • वर्ष 2015 में 60 वर्ष से ऊपर की जनसंख्या में वृद्धि हुई है।
    1995 -10 प्रतिशत (सकल जनसंख्या का)
    2015 -12 प्रतिशत (सकल जनसंख्या का)
    2050 -21 प्रतिशत अनुमानित (सकल जनसंख्या का)
  • वैश्विक स्तर पर लगभग 3.6 बिलियन महिलाएं एवं 3.7 बिलियन पुरुष जनसंख्या है।
  • महिलाएं कुल आबादी की 49.6 प्रतिशत हैं।
  • वैश्विक स्तर पर लिंगानुपात 1.02 है। अर्थात 102 पुरुषों पर 100 महिलाएं हैं।
  • वैश्विक स्तर पर वर्ष 2010-2015 के दौरान सकल प्रजनन दर 2.5 रही जो वर्ष 1990-95 में 3 थी।
  • विकसित एवं विकासशील देशों के संदर्भ में प्रजनन दर भिन्न-भिन्न है।
    विकसित क्षेत्र – 1.7 (1995-2000-2010-2015)
    विकासशील क्षेत्र – 2.7 (2010-2015)
  • सबसे कम प्रजनन दर वाला क्षेत्र पूर्वी एवं दक्षिणी यूरोप है जहां प्रजनन दर 1.5 (वर्ष 2010-2015) है।
  • जबकि यूरोप के संदर्भ यह 1.6 है।
  • सर्वाधिक जन्म दर वाले क्षेत्र मध्य एवं पश्चिमी अफ्रीका (5.6) है। इनकी अपेक्षा उप-सहारा क्षेत्र में जन्म दर (4.6) कम है।
  • विवाह की अवस्था में पिछले दो दशकों में वृद्धि देखी जा रही है। विवाह की उम्र औसतन महिलाओं के संदर्भ में 25 एवं पुरुषों के संदर्भ में 29 है।
  • अच्छा स्वास्थ्य न केवल एक बुनियादी मानव अधिकार है अपितु व्यक्तिगत तथा सामाजिक विकास की पूर्व शर्त भी है। महिलाओं एवं पुरुषों के स्वास्थ्य स्तर की भिन्नता को तीन परस्पर संबंधित महत्त्वपूर्ण कारकों यथा-विकास, जैविक एवं लैंगिक के आधार पर निर्धारित किया जाता है।
  • पिछले दो दशकों में महिला एवं पुरुष दोनों की जीवन प्रत्याशा में वृद्धि हुई है।
  • वैश्विक स्तर पर वर्ष 2010-2015 के दौरान महिलाओं की जीवन प्रत्याशा 72 एवं पुरुषों की जीवन प्रत्याशा 68 वर्ष रही है।
  • महिलाओं के संदर्भ में सबसे उच्च जीवन प्रत्याशा जापान (86.9 वर्ष) की है।
  • महिला एवं पुरुषों की जीवन प्रत्याशा में सर्वाधिक अंतर (13 वर्ष) सोवियत संघ में पाई जाती है, जो इस प्रकार है :-
    महिला – 74 वर्ष
    पुरुष – 61 वर्ष
  • वैश्विक स्तर पर विकासशील देशों की अपेक्षा विकसित देशों में जीवन प्रत्याशा अधिक होती है।
  • इसका एक अपवाद सिंगापुर है।
  • महिलाओं एवं पुरुषों के संदर्भ में मृत्यु का प्रमुख कारण गैर-संक्रामक रोग है। संक्रामक रोगों का मृत्यु के संदर्भ में प्रतिशत न्यूनतम है।
गैर-संक्रामकसंक्रामक
महिला90 प्रतिशतमहिला5 प्रतिशत
पुरुष85 प्रतिशतपुरुष6 प्रतिशत
  • तंबाकू सेवन मृत्यु का दूसरा प्रमुख कारण है। कुल वैश्विक मृत्यु में 9 प्रतिशत तंबाकू सेवन से होती है।
  • तंबाकू सेवन से प्रति वर्ष 6 मिलियन लोग मृत्यु का शिकार होते हैं जिनमें 1.5 मिलियन महिलाएं हैं।
  • तंबाकू सेवन से 22 प्रतिशत लोग मुख के कैंसर से जबकि 71 प्रतिशत लोगों की फेफड़े के कैंसर के कारण मृत्यु होती है।
  • तंबाकू का सेवन 15 वर्ष से ऊपर के उम्र में 8 प्रतिशत महिलाएं एवं 36 प्रतिशत पुरुष करते हैं।
  • सर्वाधिक तंबाकू सेवन विकसित देशों की महिलाएं करती हैं।
  • हानिकारक अल्कोहल के सेवन से 3.3 मिलियन लोग प्रति वर्ष मृत्यु का शिकार होते हैं।
  • कुल मृत्यु का 6 प्रतिशत अल्कोहल सेवन से होता है।
  • वैश्विक स्तर पर 15 वर्ष से ऊपर 29 प्रतिशत महिलाएं एवं 48 प्रतिशत पुरुष अल्कोहल का सेवन करते हैं।
  • वैश्विक स्तर पर HIV संक्रमण में कमी आई है।
  • वैश्विक स्तर पर 15-49 वर्ष की अवस्था के संदर्भ में HIV मृत्यु का बड़ा कारण है।
  • विकासशील देशों में HIV से होने वाली मृत्यु दर 34 व्यक्ति प्रति एक लाख है जबकि विकसित देशों में 13 व्यक्ति प्रति एक लाख है।
  • मातृत्व काल में होने वाली मृत्यु महिलाओं के संदर्भ में मृत्यु का प्रमुख कारण है।
  • वर्ष 2013 में लगभग 289000 महिलाएं गर्भावस्था के दौरान या डिलीवरी के 42 दिनों बाद मृत्यु की शिकार हुईं।
  • मातृ मृत्यु दर (MMR) विकसित देशों में 16 प्रति एक लाख जबकि विकासशील देशों में यह 230 प्रति एक लाख है।
  • शिक्षा मानव का मौलिक अधिकार एवं संपोषणीय विकास के लक्ष्य को प्राप्त करने का प्रमुख उपकरण है।
  • विकसित एवं विकासशील देशों के मध्य शिक्षा के क्षेत्र में बहुत अधिक अंतर पाया जाता है।
  • विकासशील देशों में प्रत्येक दो में से केवल एक बच्चा ही पूर्व प्राथमिक शिक्षा प्राप्त कर पाता है जबकि विकसित देशों में प्रत्येक 10 में से 9 बच्चे पूर्व प्राथमिक शिक्षा प्राप्त करते हैं।
  • उचित उम्र में प्राथमिक स्कूल में नामांकन उप-सहारा अफ्रीका और ओशेनिया को छोड़कर अधिकांश क्षेत्रों में लगभग सार्वभौमिक है।
  • वैश्विक स्तर पर 58 मिलियन बच्चे, जिनमें 31 मिलियन लड़कियां शामिल हैं, प्राथमिक स्कूल की उम्र में स्कूल से बाहर हैं।
  • विश्व में 74 प्रतिशत लड़के एवं 72 प्रतिशत लड़कियां ही माध्यमिक स्कूल जा पाते हैं।
  • विज्ञान और इंजीनियरिंग के क्षेत्र में स्नातक महिलाओं का अनुपात गरीब एवं अमीर दोनों ही देशों में कम है।
  • शोध क्षेत्र में महिलाओं का अनुपात केवल 30 प्रतिशत ही है।
  • अध्यापिकाओं का प्रतिशत प्राथमिक स्तर पर दो-तिहाई, माध्यमिक स्तर पर 52 प्रतिशत एवं उच्च शिक्षा स्तर पर 42 प्रतिशत है।
  • वैश्विक स्तर पर लगभग 75 प्रतिशत पुरुष एवं 50 प्रतिशत महिलाएं श्रमशक्ति में लगे हुए हैं।
  • वर्ष 1995 के बाद से युवा महिलाओं एवं पुरुषों (15-24) दोनों की श्रमशक्ति में एक बड़ी गिरावट दर्ज की गई है।
  • महिलाओं में पुरुषों की अपेक्षा बेरोजगारी अधिक है।
  • महिलाएं वैतनिक एवं अवैतनिक (घरेलू काम एवं बच्चों की देखभाल) कार्यों को मिलाकर प्रतिदिन पुरुषों की अपेक्षा अधिक समय तक कार्य करती हैं।
  • महिलाएं विकसित क्षेत्रों में पुरुषों की अपेक्षा 30 मिनट एवं विकासशील क्षेत्रों में 50 मिनट अधिक कार्य करती हैं।
  • वर्ष 1995 की तुलना में वर्ष 2015 में महिला एवं पुरुष दोनों की श्रम बाजार में भागीदारी कम हुई है।
  • 15-24 उम्र के पुरुष एवं महिला की श्रम भागीदारी में कमी आई है जबकि 25-54 की उम्र की महिला भागीदारी बढ़ी है।
  • बेरोजगार महिलाएं अथवा घरेलू कामकाजी महिलाएं पुरुषों की तुलना में बहुत ही कम मौद्रिक आय वाली हैं।
  • पिछले दो दशकों में कुछ देशों ने मातृत्व एवं पितृत्व अवकाश लाभ के लिए कानून बनाए हैं।
  • शक्ति एवं निर्णय-निर्माण के संदर्भ में सर्वाधिक लिंगभेद देखा जाता है।
  • लगभग पूरे विश्व के समाज में तथा सरकारी एवं निजी संस्थानों में निर्णय-निर्माण के संदर्भ में महिलाएं अल्पसंख्यक की भूमिका में हैं। पिछले दो दशकों के दौरान इस स्थिति में परिवर्तन हुआ है परंतु यह बहुत धीमा है।
  • प्रत्येक पांच में से एक महिला ही विधायिका में सदस्य है। कुछ देशों में महिला आरक्षण की व्यवस्था की गयी है जिससे इनके चुने जाने का प्रतिशत बढ़ा है।
  • विधायिका में महिलाओं का अनुपात पहले की अपेक्षा कुछ बढ़ा है। वर्ष 1997 में महिलाओं का अनुपात 12 प्रतिशत था वहीं वर्ष 2015 में बढ़कर 22 प्रतिशत हो गया है।
  • मंत्रिमंडल में केवल 18 प्रतिशत महिलाओं की पहुंच है।
  • विश्वभर में महिलाओं की पार्लियामेंट तक पहुंच न्यूनतम है। कुछ देशों में आरक्षण के कारण पार्लियामेंट में महिलाओं की स्थिति काफी उत्साहजनक है।
  • संसद में महिला सांसदों के प्रतिशत के संदर्भ में रवांडा पहले स्थान पर है जहां 64 प्रतिशत महिला सांसद हैं।
  • महिला सांसदों का उच्च अनुपात कुछ देशों में निम्नवत है-
    बोलीविया 53 प्रतिशत
    अंडोरा 50 प्रतिशत
    क्यूबा 49 प्रतिशत
  • संयुक्त राष्ट्र आर्थिक एवं सामाजिक परिषद ने वर्ष 1990 में अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर 30 प्रतिशत महिला प्रतिनिधित्व का मानक निर्धारित किया था।
  • वर्ष 2015 में 190 देशों में से केवल 43 देशों ने इस लक्ष्य को प्राप्त किया।
  • सिविल सर्विस के क्षेत्र में महिलाओं का प्रतिशत विकसित एवं विकासशील दोनों देशों में ही संतोषजनक नहीं है और यह निम्नवत है :-
उच्चतम अनुपात वाले देशन्यूनतम अनुपात वाले देश
हंगरी77%लक्जमबर्ग16%
सोवियत संघ62%बेल्जियम17%
बुल्गारिया61%आयरलैंड19%
डेनमार्क22%
नॉर्वे22%
फ्रांस23%
नीदरलैंड्स26%
  • प्राइवेट सेक्टर में 30 प्रतिशत महिलाएं ही प्रबंधक के पद तक पहुंच पाती हैं।
  • महिलाओं के संदर्भ में उनकी उम्र, शिक्षा अथवा आय का ध्यान न दिया जाना उनके प्रति शारीरिक, मानसिक तथा आर्थिक अत्याचार है।
  • विश्वभर में एक-तिहाई महिलाएं शारीरिक अथवा यौन उत्पीड़न के मामले में अपने घनिष्ठ सहयोगी के द्वारा शिकार बनाई जाती हैं।
  • विकसित एवं विकासशील दोनों ही देशों में अपने घनिष्ठ सहयोगी द्वारा यौन उत्पीड़न आम बात है।
  • विश्वभर में 10 प्रतिशत महिलाएं ही इन अत्याचारों के खिलाफ पुलिस सहायता प्राप्त कर पाती हैं।
  • महिलाओं के खिलाफ हिंसा को समाप्त करने के लिए ‘बीजिंग घोषणा-पत्र 1995’ में कुछ प्रावधान बनाए गए।
  • 25 नवंबर को महिलाओं के खिलाफ हिंसा की समाप्ति दिवस के रूप में मनाया जाता है।
  • विश्वभर में 35 प्रतिशत महिलाएं अपने निकट सहयोगी या गैर-सहयोगी द्वारा यौन हिंसा की शिकार बनती हैं।
  • वर्ष 2014 में संयुक्त राष्ट्र महासभा द्वारा महिलाओं की तस्करी के खिलाफ एक प्रस्ताव पारित किया गया।
  • विकासशील देशों में आधी आबादी के लिए पीने के लिए स्वच्छ पानी उपलब्ध नहीं है। इन देशों में पानी की व्यवस्था करने की जिम्मेदारी महिलाओं पर होती है।
  • विकासशील देशों में शुद्ध जल एवं साफ-सफाई के अभाव में वर्ष 2012 में 0.8 करोड़ मौतें हुई। इनमें आधी संख्या महिलाओं एवं लड़कियों की थी।
  • स्वच्छ पानी एवं स्वच्छ ऊर्जा तकनीक तक विकासशील देशों की महिलाओं की पहुंच का न होना इनके स्वास्थ्य पर बुरा असर डालता है।
  • विकासशील देशों में लकड़ी एवं ठोस ईंधन के प्रयोग के कारण स्वास्थ्य पर हानिकारक असर होता है।
  • वैश्विक स्तर पर स्वच्छ पीने के पानी की उपलब्धता का अनुपात पहले की अपेक्षा कुछ बढ़ा है। वर्ष 1990 में 76 प्रतिशत लोगों तक ही पीने का पानी उपलब्ध था जो 2015 में बढ़कर 91 प्रतिशत हो गया है।
  • उप-सहारा क्षेत्र में सर्वाधिक जनसंख्या के लिए पीने के पानी का अभाव है।
  • स्वच्छता के संदर्भ में भी वैश्विक स्तर पर कुछ सुधार हुआ है। जहां वर्ष 1990 में 54 प्रतिशत लोगों तक ही स्वच्छता की पहुंच थी, वर्ष 2015 में बढ़कर यह 68 प्रतिशत हो गया है।
  • विश्वभर में 2.4 बिलियन लोग साफ-सफाई की उपलब्धता के बिना ही जीवन जी रहे हैं।
  • लगभग 1 बिलियन लोग खुले में शौच करने के लिए विवश हैं। फिर भी इस मामले में सर्वाधिक सुधार एशिया के देशों में हुआ है।
  • सर्वाधिक न्यूनतम उपलब्धता उप-सहारा क्षेत्रों में है।
  • ठोस अपशिष्ट भोजन बनाने के लिए प्रयुक्त होता है जो महिलाओं के स्वास्थ्य के लिए अधिक नुकसानदायक है। ठोस अपशिष्ट के प्रयोग में पहले की अपेक्षा कमी आई है जो अच्छा संकेत है। वर्ष 1990 में 53 प्रतिशत ठोस अपशिष्ट का प्रयोग किया जाता था, वह 2010 में घटकर 41 प्रतिशत हो गया है।
  • गरीबी के लिए आर्थिक असमानता अधिक जिम्मेदार है। अधिकांश देशों में महिलाएं अपने पति पर आर्थिक रूप से निर्भर हैं।
  • पुरुषों की अपेक्षा महिलाओं का अनुपात नकदी के संदर्भ में न्यूनतम है।
  • विकासशील देशों में जमीन एवं संपत्ति में महिलाओं के अधिकार के लिए वैधानिक प्रावधान नहीं है।
  • एक-तिहाई विकासशील देशों में पैतृक संपत्ति में महिलाओं का अधिकार नहीं है।
  • प्रत्येक तीन में एक महिला का घरेलू खर्चों पर कोई नियंत्रण नहीं है। जबकि प्रत्येक 10 में से एक महिला से उनकी कमाई को खर्च करने के संदर्भ में पूछा नहीं जाता।
  • औपचारिक वित्तीय संस्थाओं तक महिलाओं की पहुंच पुरुषों की तुलना में बहुत कम है। 47 प्रतिशत महिलाओं का बैंकों में एकल या संयुक्त खाता है जबकि पुरुषों का 55 प्रतिशत खाता है। यह अंतर मध्य-पूर्व, उत्तरी-अफ्रीका एवं दक्षिण-एशिया में अधिक है।
  • विकासशील देशों में वित्तीय संस्थाओं तक महिलाओं एवं पुरुषों की पहुंच का प्रतिशत क्रमशः 37 एवं 46 है।
  • वैश्विक स्तर पर 1.25 डॉलर प्रतिदिन खर्च करने वाले लोग वर्ष 2011 में 1 बिलियन थे।
  • वर्ष 2015 में गरीबी का औसत अनुपात 12 प्रतिशत है जबकि विकासशील देशों में 14 प्रतिशत लोग गरीब हैं।
  • विकासशील देशों में महिलाएं, पुरुषों की अपेक्षा खाद्य असुरक्षा से अधिक प्रभावित हैं। जहां 39 प्रतिशत महिलाएं खाद्य असुरक्षा से प्रभावित हैं वहीं 13 प्रतिशत पुरुष इससे प्रभावित हैं।
  • निष्कर्षतः कहा जा सकता है कि बीजिंग घोषणा-पत्र में निर्धारित लक्ष्यों की प्राप्ति पूर्ण रूप से नहीं की जा सकी, फिर भी महिलाओं के प्रति व्याप्त असमानता में कुछ कमी आई है। परंतु वैश्विक स्तर पर इस दिशा में और प्रयास किए जाने की जरूरत है, ताकि 2030 तक इस लक्ष्य की पूर्णतः प्राप्ति की जा सके।