Global Nutrition Report 2018
The national framework to improve nutrition for children must be upgraded on priority
The health, longevity and well-being of Indians has improved since Independence, and the high levels of economic growth over the past two-and-half-decades have made more funds available to spend on the social sector. Yet, the reality is that a third of the world’s stunted children under five — an estimated 46.6 million who have low height for age — live in India. A quarter of the children display wasting (that is, low weight for height) as well. As the Global Nutrition Report 2018 points out, this finding masks the wide variation in stunting levels in different parts of the country. District-level data show high and very high levels of stunting mainly in central and northern India (more than 30% and 40%, respectively), but less than 20% in almost the entire south. This shows the important role played by political commitment, administrative efficiency, literacy and women’s empowerment in ensuring children’s health.
Food and freedom go together, and the availability of one strongly influences access to the other; social institutions can work to improve nutrition and children’s welfare in free societies, and the absence of hunger enables people to develop their capabilities. Governments should acknowledge the linkages and commit themselves to improved nutritional policies. The national framework to improve nutrition already exists. The Anganwadi Services scheme, which incorporates the Integrated Child Development Services, caters to children up to age six, and to pregnant and lactating women. If it has not worked well in several States, it must be subjected to a rigorous review and targeted interventions for supplementary nutrition made.
Among the factors affecting the quantity and quality of nutrition are maternal education, age at marriage, antenatal care, children’s diet and household size. Now that mapping of malnutrition at the district level is available, as in the Global Nutrition Report, it is incumbent on State governments to address these determining factors. A second issue is that of the quality of nutrition in packaged foods available to children. Going by the report, only 21% of these foods in India were rated as being healthy, based on overall energy, salt, sugar and saturated fat on the negative side, and vegetable, fruit, protein, fibre and calcium as positive factors.
The fact that the global average of processed foods scored only 31% and a peak of 37% in New Zealand indicates that whole foods and cooked meals emerge superior. India should invest more of its economic prosperity in its welfare system, without binding itself in restrictive budgetary formulations. The Economic Survey 2017-18 put social services spending at 6.6% of GDP, an insignificant rise after a marginal decline from the 6% band during the previous year to 5.8%. The latest report on stunting and wasting should convince the Centre that it needs to understand the problem better and work with the States to give India’s children a healthy future.
देश में आजादी के पूर्व से लेकर आजादी के बाद आज तक कुपोषण की गंभीर समस्या विद्यमान है। ग्लोबल न्यूट्रिशन रिपोर्ट 2018 के अनुसार विश्व भर में 15 करोड़ से अधिक बच्चे कुपोषण के शिकार हैं। भारत में 4 करोड़ 66 लाख बच्चे बौने व कम लंबाई के रूप में कुपोषण से ग्रस्त हैं। यह संख्या दुनिया भर में सर्वाधिक है। इस मामले में नाइजीरिया और पड़ोसी देश पाकिस्तान 1.39 करोड़ और 1.7 करोड़ के साथ क्रमशः दूसरे व तीसरे पायदान पर है। भारत के 604 जिलों में से 239 जिलों में अविकसित बच्चों का प्रतिशत 40 फीसदी से अधिक है।
कुपोषण से मरते बच्चे
दरअसल, कुछ जिलों में इन बच्चों की संख्या 12.4 फीसदी तो कुछ जिलों में 65.1 फीसदी तक है। देश में लंबाई के मुकाबले कम वजन वाले बच्चों की संख्या 2.55 करोड़ है जो नाइजीरिया और इंडोनेशिया से भी अधिक है।
रिपोर्ट के अनुसार कम वजन वाले दुनिया के आधे से अधिक बच्चे दक्षिण एशिया में रहते हैं। ऐसे बच्चों की आधी संख्या वाले तीन देशों में से दो एशिया में हैं। भारत में 4.66 करोड़ और पाकिस्तान में 1.7 करोड़ बच्चे कम वजन वाले हैं। भारत उन देशों में भी शामिल है, जहां दस लाख से अधिक बच्चे मोटापे का शिकार हैं। ऐसे बच्चों की अधिक संख्या उच्च-मध्यम आय वर्ग वाले देशों और सबसे कम संख्या कम आय वर्ग वाले देशों में हैं।
भारत की जनसंख्या अधिक होने के कारण यहां कुपोषण का स्तर व्यापक है। कुपोषण का इकलौता कारण भोज्य पदार्थों की पर्याप्त पहुंच ना हो पाना ही नहीं है बल्कि सही मायनों में आहार में पोषक तत्वों की कमी होना है, क्योंकि ये पोषक तत्व ही हमारे शरीर में ऊर्जा प्रदान करने का माध्यम है। जब आहार में प्रोटीन, कार्बोहाइड्रेट, वसा, विटामिन और खनिज जैसे पोषक तत्व पर्याप्त मात्रा में नहीं मिलते तब व्यक्ति अल्पपोषण से पीड़ित हो जाता है। परिणामस्वरूप व्यक्ति की उम्र के हिसाब से ऊंचाई और वजन कम होने लगता है। जब इन पोषक तत्वों की शरीर में अधिकता हो जाती है तो अतिपोषण के रूप में व्यक्ति को मोटापा घेरने लगता है, उसे हृदय रोग, मधुमेह व कैंसर की बीमारियां का शिकार होना पड़ता है।
भारत के बच्चों की स्थितियां
भारत के बच्चों में सर्वाधिक कुपोषण का कारण लड़कियों की कम उम्र में शादी होना है। देश में आज भी बाल विवाह निषेध अधिनियम 2006 व कानून मौजूद होने के बावजूद 47 फीसदी लड़कियों की शादी 18 वर्ष की उम्र से पहले हो जाती है। इस कारण नाबालिग लड़की की कोख से जन्म लेने वाले अधिकतर बच्चे अविकसित व कुपोषण का शिकार हो जाते हैं।
इसके अलावा हमारे देश में लड़कियों से होने वाले भेदभाव के चलते उनकी सेहत पर उतना ध्यान नहीं दिया जाता जितना की लड़के की सेहत पर दिया जाता है। एक कहावत के अनुसार मां लड़के की खिचड़ी में घी ज्यादा ही डालती है। इस वजह से लड़कियों को पर्याप्त मात्रा में वे सभी पोषक तत्व मिल नहीं पाते जो उनकी रोग प्रतिरोधक क्षमता में वृद्धि कर सकें।
देश में कम वजन वाले कुपोषित बच्चों की संख्या अधिक वजन यानी मोटापा से ग्रस्त बच्चों की संख्या से कई गुणा अधिक है। भारत में आज भी 27 करोड़ लोग गरीबी रेखा से नीचे जीवनयापन करने को विवश है। जाहिर है कि इस स्थिति में इन लोगों को पर्याप्त मात्रा में कैलोरी युक्त भोजन की प्राप्ति नहीं हो पाती है। वहीं जन्म के समय शिशु के लिए मां का दूध उत्तम व अनिवार्य आहार होने के बाद भी देश में केवल 37.1 प्रतिशत नवजात शिशु ही मां का स्तनपान करते हैं।
नवजात के लिए पौष्टिक व प्रतिरक्षा मूल्य के लिए आवश्यक मां का दूध उन्हें नहीं मिलने से वे कुपोषित हो जाते हैं। इस तरह ज्ञान की कमी के कारण बच्चों का लालन-पालन बेहतर तरीके से नहीं हो पाता है। दूसरी ओर लाखों बच्चे मोटापा से ग्रस्ति हैं। ये वे बच्चे हैं जिन्हें पोषक तत्व तो अधिक मात्रा में मिल रहे हैं लेकिन वे उन्हें पचाने के लिए व्यायाम और योग पर ध्यान नहीं दे रहे हैं। इससे इतर उनको मोबाइल गेम्स और टेलीविजन ने इस कदर आकर्षित कर रखा है कि उनकी मैदानी खेलों के प्रति रुचि ही खत्म होने लगी है।
राष्ट्र के विकास और संवृद्धि पर प्रश्नचिह्न लगाने वाली यह वर्तमान रिपोर्ट इसलिए ओर भी चिंताजनक हो जाती है कि देश जहां एक ओर विश्व की बढ़ती हुई अर्थव्यवस्था कहलाया जा रहा है तो दूसरी ओर देश के सरकारी गोदामों में प्रतिवर्ष लाखों क्विंटल अनाज बारिश से सड़ जाने के कारण भविष्य कहे जाने वाले बच्चों को कुपोषित होना पड़ रहा है। जहां बी.पी.एल परिवारों को शासकीय उचित मूल्य दुकानों के माध्यम से कम दर में पोषण युक्त अन्न उपलब्ध कराया जा रहा है, जहां कुपोषण से निपटने के लिए अनेकों योजनाएं और हेल्थ केयर सिस्टम चलाया जा रहा है, उस देश में बच्चे कुपोषित हैं यह कहीं ना कहीं उन नीतियों का सही क्रियान्वयन ना होना ही है।
दरअसल, देखा जाए तो देश में आईसीडीएस जैसी महत्वाकांक्षी परियोजना चल रही है एवं इनकी प्रक्रियाएं विश्व स्वास्थ्य संगठन के मानकों पर आधारित है किंतु वर्तमान समय में यह प्रोजेक्ट आधारभूत एवं संस्थागत संसाधनों की कमियों से जूझ रहा है, अत: प्रक्रिया परिणाम आधारित ना होकर केवल कागजी कार्यवाही पर ज्यादा टिकी है।
जागरूकता का अभाव
निसंदेह देश में कुपोषण को लेकर जागरूकता की कमी है व कार्यकर्ताओं में पर्याप्त प्रशिक्षण का अभाव है। इन समस्याओं के लिए एक पहल यह हो सकती है कि हम कार्यकर्ताओं को ज्यादा से ज्यादा कुपोषित बच्चों की पहचान करने के लिए प्रोत्साहित करें, ऊष्मायन केंद्रों को अत्याधुनिक बनाएं, संसाधनों के साथ मेडिकल स्टाफ की पूर्ति करें, गरीब परिवारों को आर्थिक सहायता प्रदान करें, उन्हें अच्छी तरह से कुपोषण के प्रति एवं उसके दुष्परिणामों के प्रति जागरूक करें। इसके लिए हमारा मकसद ‘पोलियो मुक्त भारत’ की भांति ‘कुपोषण मुक्त भारत’ का होना चाहिए।
The world’s most comprehensive report on nutrition highlights the worrying prevalence and universality of malnutrition in all its forms. In its fifth edition, the Global Nutrition Report provides a concrete overview of progress made and highlights solutions from around the globe calling on all stakeholders to act now to address malnutrition.
The burden of malnutrition is unacceptably high.
Malnutrition is a universal issue that no country in the world can afford to overlook. A third of reproductive-age women are anaemic, while 39% of the world’s adults are overweight or obese and each year around 20 million babies are born underweight.
Beyond health, slow progress on malnutrition is also impacting the social and economic development of countries. It is estimated that malnutrition in all its forms could cost society up to US$3.5 trillion per year, with overweight and obesity alone costing US$500 billion per year.
Corinna Hawkes, co-chair of the Report and Director of the Centre for Food Policy, said: “The figures call for immediate action. Malnutrition is responsible for more ill-health than any other cause. The health consequences of overweight and obesity contribute to an estimated four million deaths, while undernutrition explains around 45% of deaths among children under five. The uncomfortable question is not so much “why are things so bad?” but “why are things not better when we know so much more than before?”