Govt, RBI step back from the brink, signal uneasy truce
After a nine- hour RBI board meeting on Monday, RBI has decided to make concessions on capital adequacy and referred the reserves issue to an expert panel
The tension between the government and the Reserve Bank of India appeared to have defused for the time being with both parties agreeing to settle for a middle ground at the end of an over nine-hour board meeting on Monday.
The most contentious issue that the central bank and finance ministry locked horn was the issue of RBI’s capital. Now, while RBI has agreed for setting up of an expert committee on the economic capital framework (ECF) its mandate is restricted to future earnings and not the existing reserves, sources privy to the board deliberations told The Hindu. The membership and terms of reference of the committee will be decided by the finance minister and RBI governor.
“The board decided to constitute an expert committee to examine the ECF, the membership and terms of reference of which will be jointly determined by the Government of India and the RBI,” RBI said in a statement.
Sources indicate there were detailed presentation by RBI on the issue of economic capital as well as other issues like prompt corrective action framework.
On the PCA, Board for Financial Supervision (BFS) of RBI will review the norms and will take a call if some of the parameters like net non-performing asset (NPA) ratio could be relaxed so that some of the banks come out of the PCA. There are 11 public sector banks out of 21 that are on PCA. The BFS consists of governor, four deputy governors and few other board members.
Another significant decision was relief to the micro, small and medium enterprises – the sector which is badly hit due to twin blows of demonetisation and patchy implementation of Goods and Service Tax (GST).
“The Board also advised that the RBI should consider a scheme for restructuring of stressed standard assets of MSME borrowers with aggregate credit facilities of up to ₹250 million [₹25 crore] , subject to such conditions as are necessary for ensuring financial stability,” RBI said.
On the issue of capital adequacy ratio, after much deliberations to reduce it to 8%, it was finally retained at 9%. However, the deadline for implementing the last tranche of 0.625% under the capital conservation Buffer (CCB), has been extended by one year, that is, up to March 31, 2020.
Two other important issues that could not be discussed — liquidity for non-banking financial companies and governance issues of RBI- and those will be taken up in the next board meeting, scheduled on 14 December, sources said.
Sources added, the meeting board meeting proceeded amicably contrary to expectation. The tension between RBI and the government was started with the latter referred to section 7 of the RBI Act for consultation on these issues. Section 7 gives the power to the government to issue direction to RBI.
“The objective was to takeout RBI from the front page of newspapers,” said a person privy to the board discussions, indicating that proceedings were smooth unlike the last meeting held on October 23.
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केंद्रीय बैंक के गवर्नर उर्जित पटेल के कार्यकाल की शुरुआत केंद्र सरकार के साथ बेहद सौहार्दपूर्ण माहौल में शुरू हुई थी। आरबीआई ने केंद्र के नोटबंदी के फैसले का समर्थन भी किया था। बाद में मुख्य ब्याज दर के मुद्दे पर दोनों के संबंधों में तब कड़वाहट आनी शुरू हो गई, जब पटेल के नेतृत्व वाली मौद्रिक नीति समिति (एमपीसी) ने दरों पर फैसला लेने से पहले मुख्य आर्थिक सलाहकार अरविंद सुब्रमण्यन से मुलाकात करने से इनकार कर दिया।
2. लाभांश का भुगतान
केंद्र सरकार आरबीआई द्वारा महज 30 हजार करोड़ रुपये के लाभांश के भुगतान से हैरान रह गई, जबकि बजट 66 हजार करोड़ रुपये का था। इसके कारण केंद्रीय वित्त मंत्री को केंद्रीय बैंक से और भुगतान की मांग करनी पड़ी, लेकिन उसने ऐसा करने से इनकार कर दिया।
3. लोन रीस्ट्रक्चरिंग मुद्दा
आरबीआई ने तमाम लोन रीस्ट्रक्चरिंग स्कीम्स को बंद कर दिया और बैंकों से सभी संभावित नुकसान के लिए फंड (प्रोविजनिंग) अलग करने को कहा, चाहे डिफॉल्ट एक दिन का ही क्यों न हो। सरकार तथा बैंकों ने आरबीआई के इस कदम का यह कहकर विरोध किया कि यह कदम व्यवहार्य नहीं है। इससे एमएसएमई को कर्ज मिलने में परेशानियों का सामना करना पड़ रहा है। सरकारी एमएसएमई को कर्ज देने के नियमों में ढील की मांग कर रही है।
4. सरकारी बैंकों का रेग्युलेशन
नीरव मोदी द्वारा किए गए पीएनबी घोटाले को पकड़ने में नाकाम रहने के लिए सरकार ने आरबीआई की कड़ी आलोचना की। इसपर प्रतिक्रिया व्यक्त करते हुए गवर्नर ने आरोप लगाया कि सरकारी बैंकों के रेग्युलेशन के लिए सरकार उसे शक्तियां नहीं दे रही। केंद्रीय वित्त मंत्रालय ने यह कहते हुए पलटवार किया कि आरबीआई के पास इसके लिए पर्याप्त शक्तियां थीं और सरकारी बैंकों के सीईओ की नियुक्ति पर उससे परामर्श लिया गया था।
5. प्रॉम्प्ट करेक्टिव ऐक्शन
आरबीआई ने आधे सरकारी बैंकों को प्रॉम्प्ट करेक्टिव ऐक्शन (पीसीए) के दायरे में रखा है, जिसके कारण उनपर कर्ज देने को लेकर कई तरह की पाबंदियां लगी हुई हैं। पीसीए के तहत अगर बैंकों को कर्ज देना है, तो सरकार को पहले उन्हें रीकैपिटलाइज करना पड़ेगा। सरकार व्यवस्था में नकदी की किल्लत के मद्देनजर, आरबीआई पर इन पाबंदियों को हटाने का दबाव बना रही है। आरबीआई ने साफ शब्दों में कहा है कि पीसीए के कारण ही बैंकों का बैड लोन (फंसा कर्ज) बढ़ने से बचा है।
6. पेमेंट्स रेग्युलेटर
पेंमेंट एंड सेटलमेंट सिस्टम्स ऐक्ट, 2007 में संशोधन करने के लिए गठित अंतर-मंत्रालयी समिति ने एक पेमेंट रेग्युटर के गठन का सुझाव दिया है, जो पेमेंट ऐंड सेटलमेंट सिस्टम पर केंद्रीय बैंक की शक्तियों को बाइपास करेगा। इसपर नाराजगी जताते हुए आरबीआई ने कहा था कि पेमेंट सिस्टम बैंक डोमिनेटेड है और केंद्रीय बैंक द्वारा इसका रेग्युलेशन डॉमिनैंट इंटरनैशनल मॉडल है।
7. आरबीआई बोर्ड में नियुक्तियां
नचिकेत मोर को उनका कार्यकाल खत्म होने से पहले ही बिना सूचना दिए बोर्ड से हटा दिया गया। आरबीआई के सीओओ के लिए दिग्गज बैंकर नचिकेत मोर पूर्व गवर्नर रघुराम राजन की पहली पसंद थे। नचिकेत मोर सरकार द्वारा मांगे गए अधिक लाभांश का खुलकर विरोध कर रहे थे। सरकार पर बोर्ड में अपने पसंदीदा लोगों को भरने का आरोप लगाया गया है, इनमें राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) से जुड़े एस. गुरुमूर्ति और सतीश मराठे भी शामिल हैं।
8. तेल कंपनियों के लिए विशेष डॉलर विंडो
तेल कंपनियों की फॉरेक्स जरूरतों को पूरा करने के लिए आरबीआई द्वारा विशेष डॉलर विंडो खोलने के लिए मना करने पर केंद्र सरकार को कंपनियों को विदेश से कर्ज लेने की मंजूरी देने को मजबूर होना पड़ा।
9. एनबीएफसी में नकदी किल्लत
आईएलएंडएफएस डिफॉल्ट की वजह से गैर बैंकिंग वित्तीय कंपनी (एनबीएफसी) सेक्टर में नकदी का भारी संकट पैदा हो गया। इसका असर बाजार पर पड़ने का खतरा पैदा हो गया, क्योंकि म्यूचुअल फंडों द्वारा करीब 40 फीसदी डेट इन्वेस्टमेंट एनबीएफसी कंपनियों में किया गया है। साल 2008 में पैदा हुए कुछ इसी तरह के संकट के दौरान आरबीआयह भी पढ़ेंः उर्जित पटेल भी बने केंद्र के गले की फांस! जानिए पूरा माजराई ने एक स्पेशल पर्पज वीइकल के सहारे एनबीएफसी की संपत्तियों को खरीदने की मंजूरी प्रदान की थी। सरकार फिर यही सुविधा दोबारा चाह रही थी, जिसका आरबीआई ने विरोध किया। परिणामस्वरूप, एनबीएफसी की संपत्तियां खरीदने के लिए सरकार को सरकारी बैंकों का रुख करना पड़ा।
10. आरबीआई के पास कैश रिजर्व
सरकार की नजर आरबीआई के पास मौजूद अतिरिक्त रिजर्व पर है। सरकार तर्क दे रही है कि अधिकांश दूसरे केंद्रीय बैंक इतनी नकदी पर नहीं बैठे हैं। दरअसल, आरबीआई इस अतिरिक्त नकदी को सरकार को देने को इच्छुक नहीं है, क्योंकि वह इसे विनिमय दर को नियंत्रित करने का जरिया मानती है और उसका मानना है कि इसका इस्तेमाल केंद्र सरकार के राजकोषीय घाटे को पाटने के लिए नहीं होना चाहिए।